Mukteshwar में क्या है ? उत्तराखंड राज्य में स्थित Mukteshwar में ओक है, देवदार है
उत्तराखंड राज्य में स्थित Mukteshwar में शांति है ,ओक है, देवदार है और मुक्त आकाश है जो इसको अन्य स्थानों से यूनिक बनाते हैं. यहां पर ओक और देवदार घने जंगल हैं . सीमेंटकंक्रीट के जंगल जो उत्तराखंड में चारो और पसर गए है यंहा बिल्कुल नहीं के बराबर है. इसी कारण आज may 2024 में जब पूरा भारत भीषण गर्मी से तप रहा है यहां का तापमान ठंडा , सुखद और सौम्य है.
How To Reach Mukteshwar
51 km Nainital से ,72 km Haldwani से ,343 km Delhi से .Nearest Airport: Pantnagar.
Mukteshwar के लिए काठगोदाम रेल्वेस्टेशन से बस ( 150 रु ), शेयर्ड टैक्सी ( 300 रु प्रतिव्यक्ति )व प्राइवेट टैक्सी (1500रु ) मिलती है.
Where to stay
रिसोर्ट, होम स्टे उपलब्ध Mukteshwar से नीचे की ओर भी कई होम स्टे है. किराया सीजन व अवकाश के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है.
What to eat
जँहा रुके है वही पर तय कर भोजन करें. बस स्टैंड पर कई जगह है पर बहुत ज्यादा ऑप्शन नही है.
When to go
अक्टूबर से जून तक. मई जून में ज्यादा टूरिस्ट जाते है ,अवॉयड करना चाहिए.
Why to go
प्रकृति से प्रेम है तो, शहर के कोलाहल से बचकर शांत वातावरण में समय बिताना हो. आध्यात्मिक अनुभव करना हो तो Mukteshwar परफेक्ट है.
Oak और देवदार घने जंगल हैं Mukteshwar में ,चिनार के पेड़ कम है एक संस्मरण :
यहां चिनार के पेड़ बहुत ही कम मात्रा में है स्थानीय लोग बताते हैं कि ओक जिसे स्थानीय भाषा में बाज कहते हैं ऐसा पेड़ है जो अपनी जड़ों में पानी को संग्रहित करके धीरे-धीरे छोड़ता रहता है. इसी कारण चारों तरफ लकदक हरियाली है . यहां के लोग यह भी कहते हैं कि नैनीताल ,अल्मोड़ा ,कौसानी जैसी जगहों पर चिनार के वृक्ष अत्यधिक होने के कारण वहां का वातावरण एकदम बदल गया है .अब पहाड़ों और मैदान में कोई फर्क नहीं रह गया है.हम मित्रों के साथ उत्तराखंड के दौरे पर अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में गए थे ,लेकिन अप्रैल माह में ही अल्मोड़ा, कौसानी जैसे स्थान तपने लगे थे. नैनीताल अपेक्षाकृत ठंडा था लेकिन सबसे ज्यादा सुखद और ठंडा वातावरण Mukteshwar में मिला.
Mukteshwar एक छोटा सा पहाड़ी स्थान है. बस स्टैंड के आसपास बमुश्किल 50 घर भी नहीं होंगे. एक लंबी सड़क ऊंचाई की ओर Mukteshwar मंदिर की पहाड़ियों की तरफ जाती है. बस स्टैंड के आसपास ही छोटे-छोटे होटल है जो घरों को बदलकर बनाए गए हैं. कुछ एक प्रभावशाली लोगों ने तीन चार रिजॉर्ट बना लिए हैं जो अत्यधिक महंगे हैं. हम लोगों ने खोज शुरू की और हमें चार लोगों के रुकने के लिए मात्र ₹1500 में 4 बैडेड रूम मिल गया . जो कि ऐसी खूबसूरत जगह पर एक उपहार की तरह था.
कई बार यात्रा वृतांत या गूगल करने पर जो चीज सामने आती है वह वास्तविकता से कहीं अलग हटकर होती है. कौसानी को ज्यादातर लोग बहुत ही ठंडी जगह के रूप में जानते हैं लेकिन अप्रैल माह में जब हम वंहा गए तो वहां का टेंपरेचर बहुत ज्यादा था. हमारी यात्रा में अल्मोड़ा, कौसानी ,सोमेश्वर आदि ऐसी जगह थी जहां पर जो सोच कर गए थे वह नहीं मिला.इसलिए दुखी मन से हम लोगों ने सोचा कि एक बार Mukteshwar जाकर फिर वापस की यात्रा शुरू करते हैं.
अल्मोड़ा से Mukteshwar की टैक्सी करी और धीरे-धीरे पहाड़ चढ़ने लगे. जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे हमारे सामने देवदार और ओक का जंगल नजदीक आ रहा था. हमारे वाहन चालक ने बताया कि सर अब आपकों यहां पर कुछ और ही नजारा देखने को मिलेगा. वाकई गगनचुंबी पहाड़ी की चोटियां और आसपास के पठारी क्षेत्र में घने जंगल देखकर मन प्रसन्न हो गया. जैसे-जैसे ऊपर चढ़ने लगे तापमान में कमी महसूस होने लगी हम सभी लोगों के मन खुशी से भर गए.इस बार की यात्रा में मेरे साथ एल .डी. शर्मा, अमृतलाल शर्मा व लेखक जगदीश ज्वलंत जैसे नए मित्र थे. जो पहले कभी यात्रा में साथ नहीं रहे. तीनों ही सेवानिवृत्ति शिक्षक के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं और पर्यटन के प्रेमी है.
यात्रा संयोजक के रूप में मुझे ग्लानि हो रही थी कि उत्तराखंड में जो परिदृश्य दिखाने उन्हें यहां लाया था वह जंगल की आग ने छीन लिया.मैदान की तरह ही हम तीन दिन अल्मोड़ा , कौसानी और कैंची धाम में रह कर गर्मी फील करते रहे. हमारी टैक्सी Mukteshwar की तरफ बढ़ रही थी. घने जंगलों और कच्चे पक्के रास्तों से गुजरते हुए देखा खुशनुमा वातावरण और प्रकृति का खजाना चारों तरफ बिखरा पड़ा है. दो आंखों से जितना समेट सकते थे सभी लोग इसको कैद करने में लग गए. लगभग 3 घंटे की यात्रा के बाद हम अल्मोड़ा से Mukteshwar पहुंच गए.
Mukteshwar की पहाड़ियों में शाम उतर रही थी. हम लोग तैयार होकर Mukteshwar भगवान के दर्शन करने के लिए निकल पड़े. यहां पहाड़ पर ना तो कोई माल रोड है नहीं कोई मार्केट. बस कुछ दुकान हैं जहां जलपान और भोजन किया जा सकता है. टूरिस्ट सीजन में जरूर भीड़ होती होगी इसके लिए पूर्व से ही बुकिंग करा कर जाना चाहिए.
हम लोग बिल्कुल उन्मुक्त होकर पैदल-पैदल Mukteshwar मंदिर की ओर बढ़ने लगे चढ़ाई तो थी लेकिन बहुत ही फ्रेंडली चढ़ाई थी.बहुत आसानी से Mukteshvar मंदिर के आँगन तक पहुंच गए. ऊपर सीढ़ियां थी . सीढ़ी चढ़ते समय सोचा कि शायद हम सब लोग औसत 65 की उम्र के हैं दिक्कत होगी. लेकिन एक बार भगवान का नाम लेकर चलने लगे तो अंत तक पहुंच गए .ऊपर जाकर देखा तो नजारा और भी भव्य था.
mukteshvar इस क्षेत्र की सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित मंदिर है, शिवलिंग है और उसके नीचे की ओर हनुमान जी को अन्य देवी देवताओं की छोटे-छोटे मंदिर हैं. माना जाता है यहां पर भगवान शिव ने एक राक्षस को मोक्ष प्रदान किया था इसीलिए इसका नाम mukteshwar पड़ा. मंदिर की ऊंचाई से देखने पर आसपास का नजारा अत्यधिक मनोरम था दूर से मकान अलग-अलग पहाड़ियों पर दिख रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे कोई खिलौना घर हों. नीचे गहरी खाई और mukteshwar बाबा के आसपास तेज हवा और मुक्त आकाश ने हमारी शाम को भक्ति -मय कर दिया. श्रद्धा से सरोबार हो हम नीचे की तरफ आए. पहाड़ी पर बने पास के गार्डन में घूमें, कुछ देर प्रकृति को निहारा पक्षियों के कलरव को सुना और मंदिर से नीचे आकर सनसेट पॉइंट की ओर चल पड़े.
पहाड़ की चोटी के थोड़ा सा नीचे वलयाकार रास्ते से होते हुए हम एक अन्य चोटी Chouli ki jaali पर पहुंचे. यहाँ कई यात्री सनसेट का इंतजार कर रहे थे. स्थानीय लोगों ने कुछ एडवेंचरस स्पोर्ट्स वहां लगा रखे थे जिनमें रस्सी से एक पहाड़ से दूसरी पहाड़ी पर जाना , झूले आदि. कई दुकानें वहां पर चाय और नाश्ता की थी. हमने काफी देर रिलैक्स किया और सूर्य के डूबने की प्रतीक्षा करते रहे.
जैसे ही सूर्य देवता अस्ताचल होने लगे चारों तरफ लालिमा फैल गई. धीरे-धीरे इतनी ऊंची पहाड़ी से सूर्य देवता का गमन देखना एक सुखद अनुभव था. यूँ तो कहीं ठंडी जगह पर गए हैं लेकिन यात्रा में शुरुआती दौर की गर्मी के बाद एक ठंडे स्थान पर अचानक पहुंच जाना और वहां के घने जंगलों को निहारना, धीरे-धीरे सूर्यनारायण को डूबते हुए देखना एक सुखद अनुभूति थी. यह अनुभूति वहां जाकर ही प्राप्त की जा सकती है.
Article writtenby : Harishankar sharma
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