sea इतराता है इठलाता है दर्प का एहसास कराता है
Sea शक्तिशाली है जब अपनी पर आता है तो तबाही मचा देता है. जब उसका स्वभाव स्निग्ध होता है तो वह दुलारता है छेड़ता है मन प्रसन्न कर देता है .
sea के किनारे खड़े होकर लहरों को अपलक निहारना
लहरों को उठते गिरते देखना अच्छा लगता है .व्यक्ति की सारी चिंताओं को लहरें बहा ले जाती है, इसी में मगन कर देती है. समुद्र sea की अठखेली करती लहरें मनुष्य के सभी भावों को तिरोहित कर देती है. ध्यान मुद्रा का भाव उत्पन्न हो जाता है. समुद्र sea की अपरिमित जलराशि की कल्पना मात्र से मनुष्य स्वयं को छोटा समझने लगता है.
मनुष्य का जो घमंड है वह कहीं पीछे छूटने लगता है.इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को साल में एक बार समुद्र sea किनारे जाकर एक घंटा मन से अपलक समुद्र की लहरों के उतार-चढ़ाव को देखना चाहिए. जिससे उसे एहसास हो कि वह कितना बौना है और प्रकृति कितनी विराट है.उसकी उपलब्धियां कितनी छोटी है.चाहे वह स्वयं को शक्तिशाली मानता हो लेकिन sea के आगे कुछ भी नहीं.
धरती पर 70 प्रतिशत Sea Water है यह खारा है.
समुद्र का पानी खारा है लेकिन समुद्र के मन में खार नहीं है. जैसा मनुष्य के मन में होता है. वह दूसरे की प्रगति देखकर ईर्ष्या करता है .मन में खार रखता है और निपटाने की जुगत करता है. समुद्र sea आधे समय शांत रहता है आधे समय उग्र होता है.
यह उसका स्थाई स्वभाव है. जब वह उग्र होता है तो सलाह दी जाती है कि उससे जरा तरीके से मिलो. शांत होता है तो स्वाभाविक रूप से सबका स्वागत करता है बाहों में भर लेता है. जो लोग समुद्र sea किनारे रहते हैं उनके लिए समुद्र sea जीवन यापन का एक जरिया है.
जैसे कि हमारे मैदान में खेती-बाड़ी या कृषि कार्य मुख्य रूप से आजीविका चलाने का साधन है. इस तरह सीफूड पर कोस्टल एरिया की इकोनॉमी डिपेंडेंट है. समुद्र sea लाखों लोगों के जीवन यापन का जरिया है और ये लोग sea के स्वभाव की परवाह न करते हुए उससे मुठभेड़ करते रहते हैं.
कल्पना करिए की समंदर sea ना होता तो
बारिश कैसे होती. sea से उठने वाले मानसून पर ही विश्व की आर्थिक उन्नति टिकी है. मानसून कभी-कभी लेट होता है अन्यथा सब कुछ नियत समय पर होता है. प्रकृति से छेड़छाड़ ने अब इस सब कुछ तय वाले जुमले को बदल दिया है. अब जहां कभी बारिश नहीं होती थी वहां बाढ़ आ रही है और जहां बारिश होती थी वहां सूखा पड़ रहा है.
मनुष्य नाम के जीव ने समुद्र की मर्यादा,पवित्रता को भंग कर दिया है. प्रकृति के नियमों को तोड़कर sea में कचरा पाट दिया है. कचरा ही नहीं प्लास्टिक,विषैला केमिकल, न्यूलियर वेस्ट और पता नहीं क्या-क्या. मुंबई गुजरात और कुछ हद तक महाराष्ट्र के छोटे इलाकों के समुद्र sea का पानी काला हो गया है.अब ब्लू वाटर देखने के लिए लोग नीचे की तरफ जाते हैं.
दक्षिण के कुछ इलाकों में ब्लू वाटर जरूर है लेकिन परफेक्ट ब्लू वाटर देखना है तो अंडमान निकोबार या फिर लक्षद्वीप जाना पड़ेगा.जहां पर आबादी कम है, आबादी कम होने से कचरा भी कम है. जिस तरह से मैदानी इलाके में पर्यावरण की चिंता हो रही है, वनों के काटने की चिंता होती है इसी तरह समुद्री sea इलाकों में sea में कचरा कम करने और इससे होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में लोग चिंतन करते हैं. चिंतन मनन के बाद अंत में सब अपने घरों की ओर इस दिशा में बिना कोई काम करे लौट जाते हैं.
सरकार कोई भी हो चाहे केंद्र की हो या राज्यों की उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता अपनी जनता का पेट भरना है. दूसरा असंतोष को पनपने नहीं देना और अपनी पार्टी का निर्माण करना होता है. प्रदूषण,पर्यावरण, पौधारोपणऔर समुद्र sea के पानी में गंदगी फैलाने जैसे विषय दोयम दर्जे के माने जाते हैं. कुछ इसी तरह विश्व स्तर पर बने संगठन भी विचार मंथन का कार्यक्रम चलाते रहते हैं. धरातल पर इतनी बड़ी आबादी का बोझ कुछ करने नहीं देता.
यह भी देखें ;
http://Kerala में सब कुछ देख सकते है,IRCTC के फाइव नाइट सिक्स डेज के पैकेज में
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