Almora
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Almora उत्तराखंड के कुमाऊं की संस्कृति और जनजीवन को निकट से देखना हो तो 01-02 दिन अल्मोड़ा में गुजारना चाहिए

Almora उत्तराखंड का पहाड़ी क़स्बा अपने इतिहास, धरोहर और बाल मिठाई के लिए प्रसिद्ध है

Almora पर्यटकों, प्रकृति के चाहने वालों ,ट्रैकिंग करने वालों के लिए पसंदीदा शहर है .यहां पर रुकने के लिए कई होटल है खान-पान सस्ता और अच्छा है . आने जाने के लिए हर  तरह की सुविधा मिल जाती है . Almora से कौसानी ,जोगेश्वर जैसे पिकनिक स्पॉट अधिक निकट है .यहां पर होटल भी सस्ती मिल जाती है. इसलिए यहां रुक कर आसपास के स्थान में घूम कर वापस यहीं लौटआने के लिए इसको बेस बनाया जा सकता है.

कैसे पंहुचे

Almora  के लिए दिल्ली के आनंद विहार से बस मिलती है. ट्रैन से काठगोदाम आना होता है. काठगोदाम से बस टैक्सी के साधन से अल्मोड़ा पंहुचा जा सकता है. पंतनगर निकटतम  एयरपोर्ट है .

कब जाये

सितम्बर से नवम्बर, फरवरी से अप्रैल जाना ठीक होगा. गर्मी में पर्यटको की बहुत भीड़ होती है सड़के जाम रहती है.गर्मी में 38/20 तापमान रहता है.

 कँहा ठहरे

कई होटल्स है. 600 रु से शुरुआत  होकर कई महंगे रिसोर्ट मिल जायेंगे.

क्या खाएं

उत्तर भारतीय खाना मिलता है. कई अच्छे रेस्टोरेंट है. खाना सस्ता है.

क्यों जाये अल्मोड़ा

यहॉं पर  कई दर्शनीय स्थल है.अल्मोड़ा भगवान गोलू कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक और ऐतिहासिक भगवान नंदा देवी मंदिर, बानडी देवी मंदिर , कसारदेवी मंदिर , सूर्य मंदिर,गणनाथ मंदिर ,बिनसर महादेव मंदिर शामिल है .

 उत्तराखंड के कुमाऊं की संस्कृति और जनजीवन को निकट से देखना हो तो एक-दो दिन Almora में गुजारना चाहिए – संस्मरण

हम चार  वरिष्ठ नागरिक एक दिन कैची धाम में रुक कर  अगले दिन हिमाचल स्टेट परिवहन की बस से Almora के लिए निकले .Almora उत्तराखंड की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है और घनी बस्ती वाला कस्बा बन गया है .

वलयाकार सड़क से चोंटी  तक पंहुचा जाता है इसलिए यहां पर उतार चढ़ाव  अत्यधिक देखने को मिलते हैं. हमारी बस ने  हमें नीचे बस स्टैंड पर उतार दिया . गली में हमने होटल की खोज की और क्योंकि अप्रैल का महीना था गर्मी बहुत ज्यादा नहीं इसलिए नॉन एसी रूम  हमने ₹600 प्रतिदिन के हिसाब से ले लिया.

होटल अच्छी थी और इसी होटल में एक विवाह समारोह की आयोजित हो रहा था. हमें कूमायूं का  विवाह समारोह देखने को मिल गया.

हम सब सीनियर सिटीजन से 62 से 67 के बीच के थे . मुख्य मार्केट में शाकाहारी भोजनालय के लिए हमें 500 मीटर की चढ़ाई चढ़कर उपर  जाना था.पहाड़ चढ़ना किसे कहा जाता है बस वैसा  ही महसूस हुआ.

कई जगह रुक कर, बैठ कर धीरे-धीरे  मार्केट  तक पहुंचे हैं .यहां भी उतार-चढ़ाव ,गलियों में बने हुए मार्किट हैं ,बीच में ढलान है. एक अच्छी सी होटल देखकर हमने लंच किया.

दुकानदार ने बताया कि पास ही नंदा देवी का मंदिर है .थोड़ी सी चढ़ाई है पैदल ही  जाना होगा उपर रिक्शे नही चलते हैं. चड़ाई चढ़कर नंदा देवी के मंदिर तक पहुंचे .यहां पर माताजी के दर्शन किए .

मंदिर परिसर काफी लंबा  है. ईतनी ऊंचाई पर होने के बाद भी लंबे चौड़े परिसर में एक  सभागार भी देखने को मिला .बताया गया कि यहां कई बड़े-बड़े नेता भाषण दे चुके हैं . जिनमें  जवाहरलाल नेहरू जैसे धुरंधर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम शामिल है.

पहाड़ी शहर में जो विशेषताएं होती है वह सभी विशेषताएं लिए हुए Almora शहर कुछ अलसाया नजर आता है. पहाड़ी ठंडी हवाओं की बयार  की जगह यहां पर आधुनिक हवा चल पड़ी है .

इतनी ऊंचाई पर दुकान आधुनिक सामानों साजो समान से अटी पड़ी नजर आती है .बीच-बीच में उत्तराखंड की मिठाई की दुकान में बाल मिठाई और सिंघाड़ा मिठाई जरूर पुरातन प्रभाव की याद दिलाती है.

सुबह  6 बजे  यंहा चाय नही मिलेगी. यहां देर सुबह दुकान खुलती है. धीरे-धीरे शहर रफ्तार पकड़ता है ऊपर की चोटी पर जो दो बड़े रोड हैं उन पर दिन में वाहनों का आवागमन बंद रहता है. लोग पैदल ही चलकर ऊपर तक जाते हैं और नीचे उतरते हैं .

आसपास के छोटे-छोटे गांव से रोजमर्रा के सामान लेने के लिए लोग पैदल चलकर आते हैं और सर पर सामान रख कर ले जाते हुए देखे जा सकते हैं .

Almora जिला मुख्यालय होने के कारण यहां पर सभी सामग्री सुलभ है और बाजार का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है .ऊपर के दो बड़े रोड जिन्हें हम माल रोड कह सकते हैं पर आधी से ज्यादा जगह तो फल सब्जी मंडी वालों ने घेर  रखी है .स्थानीय लोगों का कहना है कि जितने भी  व्यापारी है उनमे हमारे यहां के कम है बाहरी अधिक है .

सकरी गली  से रोड में बहुत ज्यादा स्पेस नहीं होने के कारण दिन भर भीड़  बनी रहती है . पहाड़ों की प्राकृतिक खूबसूरती को यहां रहने वाले व्यक्तियों की जरुरतो ने अपने हिसाब से  ढाल लिया है या यूं कहे कि नष्ट कर दिया है तो कोई अतिशयोक्ति  नहीं होगी.

गोविंद बल्लभ पंत Almora के पीछे के गांव के रहने वाले थे . यहां पर पन्त  लोगों का काफी वर्चस्व रहा है. राजनीतिक , साहित्य -संस्कृति और प्रशासनिक आदि  मामले में पहाड़ी लोग अत्यधिक कुशाग्र  बुद्धि के होने से देश में छाए हुए हैं . Almora के बीचों बीच बगीचा ,कलेक्ट्रेट का भवन अंग्रेजी छाप को दर्शाता है .रात में माल रोड घूम कर हम फिर नीचे उतर कर आ गए.

अगले दिन टैक्सी करके हमने आसपास के दर्शनीय स्थल में कौसानी ,सोमेश्वर आदि शामिल है जाने का मन बनाया . दिन भर वही बिताया रास्ते में वाहन चालक ने पहाड़  में हो रहे विनाश के बारे में बहुत दुखी मन से बताया .रास्ते में पडने वाले हरे भरे खेतों ,पेड़ों से उसका प्रेम सहज  प्रकट हो रहा था .उसका कहना था अल्मोड़ा में आजकल बाहरी लोग बहुत ज्यादा आ रहे हैं .

ड्राईवर  ने बताया  कि गांव से उठ-उठ कर  नौजवान Almora  शहर  में रहने लगे हैं  खेती-बाड़ी छोड़ दी है .प्राकृतिक वातावरण युवाओं को रास  नहीं आ रहा है. उसका मानना था कि ऐसा ही चलता  रहा तो एक दिन पहाड़ों जिन्हें  प्रकृति और वनों के कारण पहचाना जाता है नष्ट हो जाएंगे .पहाड़ों और मैदाने में कोई फर्क नहीं रह जायेगा.

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