konkan rail
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konkan rail रूट पर बारिश में जरुर जाना चाहिए , konkan रेलवे रुट कितना लंबा है ,कब और कैसे बना

konkan rail रूट का रूप निखर आता है मानसून में

konkan rail

मुंबई से गोवा और बेंगलुरु जाने के लिए पहले पुणे होकर बेलगामी  के रास्ते से गोवा के लिए वास्कोडिगामा की ओर रेलवे ट्रैक जाया करती थी . कई वर्षों के सर्वे और प्रयासों के बाद  मुंबई से गोवा के लिए konkan क्षेत्र में होकर रेलवे लाइन बनाना  तय  किया गया . इस मार्ग के लिए सयाद्री पहाड़  एक बड़ी चुनौती थी. रास्ते में बहने वाली कई  नदियां थी ,जंगल थे .ऐसे दुर्गम मार्ग पर कोई दो चार किलोमीटर रेल नहीं डालना थी  700 किलोमीटर से अधिक लम्बाई थी .यह काम बड़े-बड़े इंजीनियरों के लिए चुनौती था. इसका सामना भारत के इंजीनियर ई-श्रीधरन के नेतृत्व में किया गया.

konkan rail रूट कैसे व कब बना

महाराष्ट्र कर्नाटक, गोवा  इन तीन  राज्यों के संयुक्त प्रयासों और केंद्र सरकार के नेतृत्व में कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन का गठन हुआ . इस  रेलमार्ग  के निर्माण  में आने वाली समस्याओं से जूझते हुए किस तरह से इसका निर्माण हुआ यह रोचक है  .

कोंकण रेलवे रूट की लंबाई 738 किलोमीटर है. यह महाराष्ट्र के रोहा से शुरू होकर कर्नाटक के थोकुर मेंगलुरु के निकट तक जाता है .निर्माण की प्रक्रिया से गुजर कर 26 जनवरी 1998 को  इस मार्ग  का उद्घाटन हुआ . कोंकण  रेलवे रूट भारत का सबसे सुंदर और रोमांचकारी मार्ग  है .

निर्माण की दृष्टि से यह सबसे चुनौतीपूर्ण था . गहरी घाटियां,  गगनचुंबी पहाड़ , सैकड़ों नदियाँ पर पुल निर्माण . पुल के नीचे हर-हराकर  बहती नदिया , मार्ग निर्माण की अनेको  चुनौतियां थी . ऊंचे  पहाड़ों और गहराइयों के  बीच  कोंकण रेलवे में कुल 2000  पुलों  का निर्माण किया गया .

निर्माण के दौरान काम करने वाले 24 कर्मचारियों को  इसमें अपने जीवन की आहुति भी देना पड़ी.  इस मार्ग में सबसे ऊंचा पुल पनवेल में बना है 64  मीटर ऊंचा और 424 मीटर लंबा तथा  लंबाई में सर्वाधिक लंबा पुल  शरावती नदी पर  है  जो 2.7 किलोमीटर लंबा है .रेल मार्ग में  कुल 91  टनल  है .इनमे में सबसे लंबी सुरंग कारबड़े सुरंग है जो 6.5 किलोमीटर  लम्बी  है .

konkan rail रूट पर कैसे व  कब जाएँ

जुलाई से सितम्बर तक जाये झरने बहते रहते है .मुंबई के पनवेल स्टेशन से लेकर मडगांव तक सुबह 5-7 बजे निकलने वाली ट्रेन से जाएँ . पनवेल से  विस्ताडोम कोच वाली ट्रेन व  वन्देभारत भी चलती है .आरक्षण करवा कर यात्रा करें .

 konkan rail रुट का रूप बारिश में निखर आता है : एक संस्मरण

कल्पना करिये सुबह के कोई  6 बज रहे है. अचानक से एक ट्रैन  जिसमे आप बैठे है  झटके से रुक गई  और आपकी नींद खुल गई .बाहर गेट पर जाकर देखते है क्या मामला है . जैसे ही दरवाजे पर पहुंचते है प्रकृति का अनुपम उपहार  सामने खड़ा होता है.दूर तक फैली ऊंची पहाड़ियां .

बारिश के मौसम में बस  छू लो इतनी ऊंचाई पर बादल पहाड़ों पर मंडराते हुए .दूर दूर तक फैली हरियाली अलौकिक दृश्य  सामने है कि मन प्रफुल्लित हो उठे .कुछ देर  में ट्रेन चल पडती है स्टेशन  चिपलून आ गया .इस रूट  पर  आने वाले स्टेशनों में रत्नागिरी के अलावा कोई बड़ा नाम सामने नहीं आता है .

konkan rail  पनवेल से ट्रेन जब छूटती है तब उसके बाद खेड , चिपलुन, संगमेश्वर रोड,  रत्नागिरी,  राजापुर रोड,  वैभववाडी,  सिंधुदुर्ग , सावंतवाड़ी रोड  और फिर मडगांव गोवा आता है.

पनवेल से निकल कर आने वाले  8 घंटों में प्रकृति हमसे जिस रूप में मिलती  उससे मन झूम उठता है.

आप सोचिये प्रकृति के अनुपम रूप  से  साक्षात्कार होने जा रहा है.प्रकृति अपने विभिन्न रूपों में सदैव मन को मोहती रही है .नया नया  बना  konkan rail रूट और  पर्यटक का समूह. दोनों ही एक अलग मूड में आ जाते है. बिना पलक झपकाए जितना प्रकृति के सौंदर्य के नजारे आत्मसात कर सकें करते  चलिए ।

चिपलुन के आगे संगमेश्वर रोड है और  उसके आगे किसी एक छोटे से स्टेशन का जाकर ट्रेन खड़ी हो जाती है.बारिश के वक्त में लैंडस्लाइडिंग हो सकती है । जगह जगह  रुकते   ट्रैन मन्थर  गति से आगे बढ़ती है. एक्सप्रेस एकदम से कहीं भी खड़ी हो जाती । यह पता  नहीं लगता था कि ट्रैन  कितनी देर खड़ी रहेगी .

रेल कभी जैसे रुकती  वैसे ही चल देती है और कभी आधा घंटा ,  50 मिनट तक खड़े हो जाती है. इधर अगस्त के महीने में मानसून की बारिश  konkan rail  क्षेत्र में टूटकर होती है. हरियाये धान के खेत ,कभी हापुस आम के बगीचे  , सुपारी  ,नारियल के पेड़  दूर-दूर तक फैले जंगल  तो कभी  समुद्र का किनारा.

दूर दूर तक   बस्तियां  नही ,कहीं कोई आदमी दिख जाए तो आप सौभाग्य समझिये .गोवा पहुंचने   तक  ट्रेन को  कुल 71 टनल पार करती है. दो हजार पुल है इस मार्ग पर  एक पुल  से निकले तो दूसरी  टनल में जाना है .बस  गिनते जाइए .

मानसून में पहाड़ी नदियां जिस तरह से उछल कर  चलती है  तो ऐसे लगता है मानो कोई प्रेयसी अपने प्रीतम से मिलने लोकलाज छोड़कर भागी  जा रही है .थोड़ी – थोड़ी दूर पर पहाड़ों से बहते मनोहारी झरने मानो  आमंत्रित  कर रहे हैं .

konkan rail रूट क्षेत्र की प्रकृति पूरे शबाब पर  रहती है बारिश में. पहाड़ हो , हरियाली हो,धूप बिखरी हो , झरने बह रहे  हो तो बात ही कुछ और होती है। इन सब के साथ konkan rail  रूट  पर  दौड़ रही एक्सप्रेस अद्भुत दृश्यों का रसपान करवाती है. एक रेल यात्रा यह भी करें.

 Article wrriten by ;harishankar Sharma

यह भी देखें ;http://स्वर्ग में हूँ Tamia mp एक संस्मरण

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4 Comments

  1. Atul Shah

    बहुत ही सुन्दर वर्णन एवं जानकारी.

  2. Vijay

    बहुत बहुत धन्यवाद आपको, ऐसी जानकारी देने के लिए

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