Madras के किसी भी शहर में जाइए सब जगह एक जैसी चाय मिलेगी
यंहां एक जैसा चाय बनाने का तरीका आपको दिखाई देगा. चाय बनाने के लिए चाय की ठेली लगाने वाले लोग कितनी मेहनत करते हैं, यह हमारे उत्तर भारतीय जो फटाफट चाय बनाने में माहिर होते हैं के लिए सीखने वाली बात है.
क्या अंतर है
उत्तर भारतीय चाय और Madras शैली की चाय में 360 डिग्री का चेंज है. उत्तर मे हम चाय बनाने के लिए केवल एक बर्तन का उपयोग करते हैं जिसे पतीली कहते है. जिसमें पहले पानी उबालते हैं ,फिर चाय पत्ती डालते हैं.
बाद में दूध और शक्कर मिलाकर उसको पकाकर छानकर पीने के लिए परोसा जाता है. कभी कभी चाय पत्ती, दूध, शक़्कर तीनो एकदम साथ मिलाकर उबाल लेते है.
Madras की चाय के लिए बड़े ताम झाम लगते हैं. एक पीतल का नल लगा बड़ा बर्तन होता है जिसे समोवर कहा जाता है जिसमें गर्म पानी उबलता रहता है. बगल में ही दूध भी गरम करने के लिए अलग बर्तन होता है.
Madras में जब तक दुकान चलती है तब तक पानी उबलता और दूध गर्म रहता है.चाय बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली काली चाय की पत्तियां आमतौर पर आसाम दार्जिलिंग की चाय होती है जिससे स्ट्रांग चाय बनती है.
Madras चाय कैसे बनती है
समोवर में गर्म पानी उबलता रहता है. जब भी कोई चाय के लिए आर्डर करता है एक कपड़े की फनल आकार की छलनी स्टील के मग मे समोवर के ऊपर बने खांचे मे रखी रहती है. जिसमें आवश्यकता अनुसार चाय पत्ती डाल कर उसमें गर्म पानी डाला जाता है और इस गर्म पानी से एक कंसंट्रेट तैयार होता रहता है.
सबसे पहले मग मे रखे चाय पत्ती के कंसन्ट्रेट को कपड़े की फ़नल आकर की छलनी से छानकर गिलास में टपकाते हुए भर दिया जाता है.अब उबलते हुए दूध में से दूध लेकर दूध डाला जाता है और कंसंट्रेट को मिक्स करके Madras चाय तैयार कर पीने वालों को दे दी जाती दूध मे पहले से ही चीनी मिली होती है.
तमिलनाडु में चाय बेचने वाले लोग स्टॉल पर एक साथ 15 से 20 ग्लास में चाय बनाने के लिए तत्पर रहते हैं. जैसे ही आर्डर मिला फटाफट गिलास में चाय का कंसंट्रेट फनल टाइप कपड़े की छलनी से टपका देता है.
फिर उबलता दूध डालता है,उसके बाद में ग्राहक की पसंद के अनुसार कड़क या सादी चाय चम्मच से हिला कर तैयार करके ग्राहक को दे दी जाती है .शक्कर दूध में पहले से पड़ी होती है .
चाय बनाने का है तरीका इतना इंस्टेंट है कि इधर ऑर्डर कर उधर चाय बनकर तैयार. तमिलनाडु के छोटे बड़े शहरों में Madras चाय की दुकान हर चौराहे पर मिल जाती है. चाय का स्वाद बढ़ाने के लिए इलायची आदि मसाले का उपयोग किया जाता है.उत्तर भारत से जाने वाले लोगों के लिए इस तरह की चाय बनते हुए देखना एक अजूबे से कम नहीं है.
कहाँ जाकर लुत्फ़ ले
चेन्नई , मदुरै , रामनाथ पुरम आदि सभी शहरों में .
Madras कैसे जाएँ
चेन्नई रैल मार्ग व हवाई मार्ग से सम्पूर्ण भारत से जुड़ा है .
चाय का उत्पादन अंग्रेजों ने 1850 में दार्जिलिंग भारत मे शुरू किया
असम,,उत्तराखंड ,बंगाल ,तमिलनाडु , केरल की पहाड़ियों पर चाय के बागानों मे चाय उत्पादित की जाती है.चाय पत्ती से चाय बनाने के तौर तरीके भी हमें अंग्रेजों ने ही सीखाये थे.लेकिन समय के साथ-साथ क्षेत्रवार इसका अनुकूलन हो गया.
क्या था अंग्रेजों का चाय बनाने का तरीका
अंग्रेजों का जो चाय बनाने का तरीका था उसमें दूध अलग गर्म करके चीनी की केतली में रखते थे, चाय पत्ती उबालकर छानकर अलग केतली में रखी जाती थी. शक्कर अलग से कप में दी जाती थी. लोग अपनी इच्छा अनुसार दूध, चाय का पानी और शकर मिलाकर चाय बनाते थे.
यह परंपरागत तरीका जो अंग्रेजों का था ,जिसमे नफासत से चाय बनती और सर्व होती थी. बड़ी बड़ी होटल्स मे आज भी यही होता है. चाय पीना पिलाना एक आदर का प्रसंग होता था.
बाद में अलग-अलग क्षेत्र में चाय बनाने और पीने का तरीका बदल गया. अंग्रेजी स्टाइल की चाय बनाने की छाप आज भी Madras के विभिन्न क्षेत्रों,शहरों में देखने को मिल जाती है.
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