Rail
बचपन की Rail  आज भी जेहन में बसी है

बचपन की Rail आज भी जेहन में बसी है

Rail में  यूं तो बचपन से ही सफर करने का अवसर मिला लेकिन तब की यात्रा सुखद नहीं हुआ करती थी

कोयले से चलने वाले Steam Engine  वाली Rail में पिताजी तीन बहनों के जनरल डिब्बे में घुसने के लिए संघर्ष किया करते थे . और जैसे तैसे खिड़की के रास्ते से हम लोगों को अंदर पहुंचाया करते

60 के दशक में तब Rail में स्लीपर क्लास  ही ज्यादा हुआ करते थे । Ac Coach  नहीं के बराबर होते थे । जनरल डब्बे में धक्का परेड  में घुसने के दौरान रिजर्व स्लीपर कोच में  आराम से बैठे यात्रियों को समाचार पत्र पढ़ते व रेडियो पर ओ मेरी शर्मीली गीत सुनते  देखते थे तो मन में आता था काश हम भी कभी  इसी तरह Rail में सफर करें .

 Rail लाइन बिछाने का कार्य

अंग्रेजों ने 1853 से प्रारंभ किया. मुंबई से थाने Bombay to Thane के बीच सबसे पहली ट्रेन 10 मई 1853 को चली। समय था  गवर्नर जनरल डलहौजी Dalhousie  का । भारत में Rail लाइन बिछाने का उद्देश्य अंग्रेजी  शासन को मजबूत  करने  व  यहां के संसाधन का लाभ उठाने का था .

Rail डाक तार  आदि सुविधाएं लार्ड डलहौजी ने  इसी वर्ष शुरू की । जो ब्रिटिश साम्राज्य के मजबूतीकरण के साथ-साथ कालांतर में भारत के एकीकरण व आजादी के आंदोलन में सहयोगी बनी .लोग माने या ना माने लेकिन यह हकीकत है कि तब भारत में  उत्तर से दक्षिण तक ना तो भाषा की  समानता थी न ही जात व धर्म को लेकर कोई एकीकृत  ढाँचा था .

Lord Mecole  की शिक्षा पद्धति और लाड डलहौजी के रेलवे डाक तार  के विकास के चलते ही भारत एकीकरण की ओर बढ़ा । अंग्रेजी भाषा ने  उत्तर दक्षिण में संवाद कायम किया। जब आजादी की बात आई तो  उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी लोग अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध  उठ खड़े हुए।

यह समय का चक्र ही है कि बड़े-बड़े साम्राज्य अपने ही किए हुए  कार्यों के कारण साम्राज्य से हाथ धो बैठे । क्या कभी अंग्रेजों ने  सोचा होगा कि  A O hume  जिस कांग्रेस का गठन  भारत में अंग्रेजों की मदद के लिए कर रहे थे उसी कांग्रेस का  गांधी जी  उपयोग करके उन्हें भारत से बेदखल कर देंगे।

QEEN Victoria

जिसका शाही का सूरज कभी अस्त नहीं होता था  आज वहीं इंग्लैंड भारत की आई टी , चिकित्सा और  इंजीनियरिंग के बल बूते  अपना काम चला रहा है .कोरोना के दौरान पश्चिमी देशों की जो हालत हुई वह किसी से छिपी नहीं है .

Rail की बात हो रही थी

रेल के साथ-साथ साम्राज्य और अन्य मामलों  में उलझ गई .फिर से पटरी पर आते हैं। फिलहाल जहां निवास है उसके ठीक सामने  कुछ दूरी पर रेलवे स्टेशन है और ट्रेनों की आवाजाही लगी रहती है.

पहले के दौर में ट्रेनों की सिटी से ही लोग पहचान लेते थे कि कौन सी गाड़ी आ रही है देहरादून एक्सप्रेस है या कि  पार्सल या फिर फ्रंटियर मेल गुजरा है . दिसंबर की ठंडी रातों में जैसे ही किसी ट्रेन के हार्न  की चीख  से नींद खुलती थी  पता लग जाता था  कि नाइट क्वीन स्टेशन छोड़ रही है ।

सामने से गुजरती हुई रेल मन में धड़कन पैदा करती है और कहती है कि उठाओ सूटकेस  और चलो मेरे साथ । मैं तुम्हें ऐसे भारत के दर्शन करवाउंगी  जहां से गुजर कर दिलखुश  हो जाएगा .

तेज भागती ट्रेन और पीछे छूटते सरसों के पीले   खेत , गेहूं की बालियां , हरे-भरे मैदान ,नदी -पहाड़  ,पुल , धान के खेत किसे नहीं लुभाते .कोकण रेलवे की यात्रा में आने वाली टनल कितना रोमांच पैदा करती है .

कल्पना करिए  आप किसी ऐसे स्टेशन पर रुके हैं जहां पहाड़  से झरना बह रहा है , कुछ ही दूरी पर पुल के नीचे नदी हरहरा कर बह रही है .मन को कितना  सुकून मिलता है । यह सब पैकेज Indian railawy  की बदौलत बहुत ही कम किराये में और  6×2.5 फ़ीट की बर्थ भी आपकी .

इन सब यात्राओं का और अधिक आनंद लेने के लिए  कुछ ज्यादा खर्च कर  वन्दे भारत vande bharat  या फिर एसी क्लास   में सफर करें  .जब यह लिखा जा रहा है तो  सामने से फिर एक ट्रेन गुजर कर दिल धड़का रही  है ।

 pl see this link also;http://Somnath द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महत्वपूर्ण नाम गुजरात के  वेरावल के निकट बसा शिवधाम है 

join our whatsup group ;https://chat.whatsapp.com/HOUfDR0ooDIKyLpCkZN0o1

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *